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| छात्रा श्वेता, जो 10 साल बाद भी डिग्री के लिए लड़ाई लड़ रही है |
डिग्री न मिलने से हाथ से गई नौकरी
श्वेता मिश्रा ने बताया कि उन्होंने यूनिवर्सिटी से डिग्री के लिए कई बार आवेदन किया, लेकिन हर बार टालमटोल किया गया| डिग्री न मिलने के कारण उनकी नोटरी की नौकरी भी हाथ से निकल गई| नोटरी में वैकेंसी निकली थी और उन्होंने आवेदन भी किया था, लेकिन डिग्री मांगी गई जो उनके पास नहीं थी| इस वजह से उनका चयन रुक गया|
विश्वविद्यालय के चक्कर और परेशानी
श्वेता ने बताया कि उन्होंने डिग्री के लिए विश्वविद्यालय के लगभग 25 बार चक्कर लगाए| हर बार हेल्प डेस्क से भेजा गया, फिर एक विभाग से दूसरे विभाग तक फाइल घुमाई जाती रही| सब कहते थे कि डिग्री घर पहुंच जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं| 2022 में उन्होंने लिखित शिकायत विश्वविद्यालय को दी, लेकिन डिग्री फिर भी नहीं मिली|
कानूनी लड़ाई और उपभोक्ता आयोग का फैसला
जब श्वेता की सुनवाई विश्वविद्यालय में नहीं हुई तो उन्होंने दिसंबर 2024 में जिला उपभोक्त विवाद प्रतितोष आयोग, मैनपुरी में याचिका दायर की| आयोग ने सुनवाई के बाद विश्वविद्यालय की कुलपति को आदेश दिया कि वह दो महीने के अंदर डिग्री दे| साथ ही रु 46,000 का जुर्माना भी लगाया गया|
इसमें रु 40,000 मानसिक और शारीरिक पीड़ा के लिए, रु 6,000 बाद व्यय के रूप में देने का आदेश दिया गया| आयोग के अध्यक्ष शशिभूषण पांडे और सदस्य नीतिका दास ने यह फैसला सुनाया और कहा कि यह राशि आयोग के खाते में दो महीने के भीतर जमा कराई जाए|
श्वेता की पढ़ाई और आवेदन प्रकिया
श्वेता ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2010 में बृजभान पीजी कॉलेज करहल से बीएससी की परीक्षा पास की| इसके बाद कानपुर विश्वविद्यालय से एलएलबी की और वकालत के लिए रजिस्ट्रेशन कराना चाहती थी| इसी वजह से उन्होंने 1 जनवरी 2022 को कानपुर विश्वविद्यालय और डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से ऑनलाइन डिग्री के लिए आवेदन किया और रु 500 फीस भी ऑनलाइन जमा की|
कानपुर विश्वविद्यालय से तो सिर्फ 8 दिन में डिग्री घर आ गई, लेकिन आगरा यूनिर्वसिटी से डिग्री आज तक नहीं मिली| जबकि उनके भाई बहन ने भी इसी यूनीवर्सिटी से बीए और एमए किया, और उनकी डिग्रियां भी आज तक नहीं आई|
प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल
श्वेता ने सवाल उठाया कि तीन साल का कोर्स करके दस साल तक डिग्री का इंतजार करना क्या जायज है? जब हजारों छात्र इसी समस्या से जूझ रहे है, तो कैसे इस विश्वविद्यालय को A+ ग्रेड दिया गया?
यह मामला शिक्षा व्यवस्था की बदहाल स्थिति को उजागर करना है| एक छात्रा को डिग्री के लिए 10 साल इंतजार करना पड़ा, और कानूनी लड़ाई के बाद उसे न्याय मिला| इस फैसले से अन्य पीड़ित छात्रों को भी हिम्मत मिलेगी कि वे अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा सकें|
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