आगरा में जातीय हिंसा पर 34 साल बाद कोर्ट का बड़ा फैसला

आगरा कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: दलित दूल्हे की घुड़चढ़ी पर हुई जातीय हिंसा में 34 साल बाद 35 दोषियों को 5-5 साल सजा 

दिनांक:30 मई 2025 

आगरा, उत्तर प्रदेश - आगरा की विशेष एसपी/ एसटी कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 34 साल पुरानी जातीय हिंसा के मामले में 35 दोषियों की 5-5 साल की सजा सुनाई है| या मामला वर्ष 1990 का है, जब एक दलित दूल्हे की घुड़चढ़ी को लेकर उच्च जाति के कुछ लोगों ने हिंसा शुरू कर दी थी| इस फैसले ने न केवल अपराधियों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया बल्कि समाज में जातीय भेदभाव और हिंसा के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी भेजा है| 

34 साल पहले जात समुदाय के लोगों ने एक दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने नहीं दिया था| इसके बाद हिंसा भड़क गई थी, जिसमें एक महीना की मौत हो गई थी, जबकि 150 लोग घायल हो गए थे| इसके बाद पनवाड़ी गांव में 10 दिन तक कर्फ्यू लगा रहा| पुलिस के साथ - साथ सेना भी तैनात की गई थी| हिंसा के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी इस मामले को लेकर आगरा आए थे| 

आगरा जातीय भेदभाव 

 






क्या था मामला ? 

यह घटना 1990 में आगरा जिले के एक छोटे से गांव में हुई थी| जब एक दलित दूल्हा अपनी बारात लेकर घोड़ी पर सवार हो रहा था, तभी कुछ उच्च जाति के लोगों ने इसका विरोध किया| उनका कहना था कि एक दलित का घोड़ी पर चढ़ना उनकी सामाजिक स्थिति के खिलाफ है| विरोध ने बहुत जल्दी हिंसक रूप ले लिया, जिसके कारण एक व्यक्ति की मौत और कई अन्य लोग गम्भीर रूप से घायल हो गए| साथ ही, बहुत सी संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया गया, और कई घरों में आग लगा दी गई| 

सिकंदरा थाने में भी दर्ज हुआ था मुकदमा 

22 जून 1990 को सिकंदरा थाने में तत्कालीन थाना प्रभारी ने 6 हजार अज्ञात लोगों के खिलाफ बलवा, जानलेवा हमला, एसएसी - एसटी एक्ट, लोग व्यवस्था भंग करने व अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था| मगर, घनस्थल से किसी की गिरफ्तारी नहीं हुए थी| इस मामले में विधायक चौधरी बाबूलाल भी आरोपी थे| जो 2022 में बारी हो गए थे|

34 साल बाद मिली सजा 

यह मामला सालों तक अदालत में लंबित रहा|मगर, 2025 में आगरा की विरोध एससी/एसटी कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाया| अदालत ने 35 आरोपियों को दोषी ठहराया और उन्हें 5-5 साल की सजा दी| यह सजा उस समय सुनाई गई जब समाज में जातीय भेदभाव और हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने की आवश्यकता महसूस की जा रही थी| इस फैसले से यह भी स्पष्ट हुआ कि जातिवाद के खिलाफ कानून मजबूत है और समाज में समानता का संदेश देने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है|

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा,"यह घटना न केवल एक व्यतिगत अपराध थी| बल्कि यह समाज में संता और समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन थी| उच्च जाति द्वारा एक दलित की घुड़चढ़ी का विरोध करना और हिंसा में बदलना समाज के विकास में एक बाधा है|" 

सरकारी और पुलिस का रुख 

इस मामले में रूप में पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन गवाहों की कमी और अपर्याप्त साक्ष्य के कारण कुछ आरोपियों को बारी कर दिया गया| बारी हुए लोग तरह से निर्दोष नहीं थे, बल्कि उन्होंने गवाहों को धमकाया था और साक्ष्यों को मिटा दिया था|

हालांकि, बाकी 35 दोषियों को दोषी ठहराए जाने के बाद न्याय की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित हुआ| सरकार और पुलिस ने इस फैसले के बाद जातीय हिंसा से जुड़े मामलों को गंभीरता से लेने का वादा किया है और आगे से  ऐसी घटनाओं का रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की योजना बनाई है| 

2010 में हुई थी अंतिम गवाही 

22 फरवरी 2010 को अंतिम गवाह के रूप में नूर मोहम्मद की गवाही हुई थी| इसमें सपा नेता रामजीलाल सुमन, एडवोकेट करतार सिंह भारतीय और सुभाष भिलावली की भी गवाही हुई थी| इन तीनों गवाहों ने कहा कि घटना उनके सामने की नहीं है| 

इसके बाद 25 मार्च 2015 में आरोपियों को तलब करके उनके बयान भी हो गए| 8 आरोपियों में विधायक चौ, बाबूलाल, मुन्नूलाल,रामवीर, रूप सिंह, देवी सिंह, शिवराम सिंह, श्याम वीर सिंह, सत्यवीर का विचारण हुआ| अगस्त 2022 में विशेष न्यायाधीश एम - एमएलए कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में आठों आरोपियों को दोषमुक्त करने का आदेश दिया था| 

सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं 

आगरा कोर्ट के इस फैसले पर सामाजिक कार्यकर्ताओं और दलित नेताओं ने खुशी जाहिर की|उनका कहना है कि यह फैसला सिर्फ न्याय का एक रूप नहीं, बल्कि सामाजिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है|कई सामाजिक संगठनों ने इसे दलित समुदाय के लिए एक बड़ी जीत माना और न्यायिक प्रणाली की तारीफ की|

हालांकि, कुछ आलचको का कहना था कि यह फैसला बहुत देरी से आया है, क्योंकि पीड़ितों और उनके परिवारों को न्याय मिलने में 34 साल का वक्त लगा|साथ ही, कई ने इस मुद्दे को जातिवाद और उच्च जाति के दबदबे के खिलाफ एक स्पष्ट बयान के रूप में लिख|


आखिरकार, यह फैसला क्या दर्शाता है? 

यह फैसला सिर्फ एक अदालती कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह समाज में जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी भेजता है|यह इस बात का संकेत है कि हमारे समाज में समानता की आवश्यकता है और जातीय हिंसा को किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता|अदालत का यह फैसला न केवल मामले के दोषियों के खिलाफ बल्कि पूरे देश में जातिवाद के खिलाफ एक कदम माना गया है|

घटना के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी पहुंचे 

घटना के समय प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी|उस समय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी इस मामले में आगरा आए थे|भरतपुर से भी जाट आगरा पहुंचे थे|वर्तमान में फतेहपुर सीकरी से विधायक चौधरी बाबूलाल का नाम सबसे पहले इसी मामले में चर्चा में आया था|

दंगा भड़कने से तत्कालीन जिलाधिकारी अग्रता अमल कुमार वर्मा और एसएसपी कर्मवीर सिंह ने गांव में बैठकें की थी|उस समय रामजीलाल सुमन केंद्रीय, मंत्री थे|उन्होंने भी दलित बेटी की बारात चढ़वाने के लिए कोशिश की थी, लेकिन सभी लोग नाकाम साबित हुए थे|  


निष्कर्ष 

आगरा कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला समाज में जातिवाद के खिलाफ चेतावनी और सामाजिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है|यह फैसला हम सभी को यह याद दिलाता है कि हम सभी को समान अधिकार और अवसर मिलने चाहिए, बिना किसी जाति, धर्म, या समुदाय के भेदभाव के|अगर आप इस तरह की महत्वपूर्ण खबरें और सामाजिक मुद्दों पर और अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहिए है, तो हमारे वेबसाइट todaynewzdailydalna.in पर जुड़े रहें|

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