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गांधी स्मारक आगरा का बंद मुख्य द्वार |
स्थानीय पार्षद ने अपनी सुविधा के अनुसार स्मारक का गेट बंद कर दिया है, जिससे यहां आम नागरिकों का आना-जाना बंद हो गया है|
तिरंगा भी नहीं फहराया गया
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर यहां न तो तिरंगा फहराया गया और न ही कोई बड़ा आयोजन हुआ| 2 अक्टूबर जयंती पर ही यहां चहल-पहल देखने को मिलती है, जब राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते है| बाकी समय यह जगह वीरान रहती है|
इतिहास: गांधी जी का आगरा प्रवास
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह हवेली ब्रजमोहन दास मेहरा की हुआ करती थी|
10 सितंबर 1929 को गांधी जी तब आगरा आए थे जब उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था| वे 21 सितंबर तक यही रुके| उनके साथ उस समय आचार्य जे. बी. कृपलानी, कस्तूरबा गांधी, मीरा बहन और जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती भी मौजूद थी| गांधी जी ने आगरा में सबसे लंबा 11 दिन का प्रवास इसी हवेली में किया|
इन दिनों वे यमुना किनारे चबूतरे पर बैठकर "वैष्णव जन तो तेने कहिए" की धून गुनगुनाते थे|
आजादी के बाद की कहानी
1948 में गांधी जी की हत्या के बाद, बृजमोहन दास ने अपने पिता रामकृष्ण दास मेहरा की स्मृति में इस हवेली को महात्मा गांधी ट्रस्ट को दान कर दिया| इसका उद्देश्य था गांधी जी की यादों को सहेजना|
शुरुआत में आगरा डेवलपमेंट अथॉरिटी ने स्मारक का सौंदर्यीकरण कराया, लेकिन बाद में देखरेख की कमी के कारण यह उपेक्षित होता चला गया|
वर्तमान स्थिति: बदहाली की तस्वीर
आज गांधी स्मारक की हालत बेहद चिंताजनक है
1. गेट पर ताला लगा है|
2. परिसर में नगर निगम का कबाड़ और कूड़ा भरा है|
3. सफाई और रखरखाव का कोई इंताज नहीं|
4. स्थानीय लोगों की पहुंच लगभग बंद|
5. गांधी स्मारक का मुख्य भवन दो मंजिल है| यहां परिसर में मंदिर भी बना है
6. बारिश में भवन के छज्जे टूट गए है, छज्जे के टूटे मालवा वही पड़े हुए है|
इतिहास को बचाने की जरूरत
इतिहासकारों और शहर के बुद्धिजीवियों का मानना है कि गांधी स्मारक को पुनजीर्वित करना जरूरी है| यहां म्यूजियम, लाइब्रेरी और ऐतिहासिक प्रदर्शनी लगाकर इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है| इससे नई पीढ़ी को आजादी के संघर्ष की कहानियां जानने का मौका मिलेगा|
स्मारक की पिछली मरम्मत: कब और किसने की?
1. 2008 में मरम्मत और जनता के लिए पुन: उद्घाटन हुआ था| यह मरम्मत आगरा के पूर्व नगर आयुक्त श्याम सिंह यादव द्वारा की गई थी| तब यह स्मारक जनता के लिए खोला गया था|
2. 2016 में आगरा के तत्कालीन कमिश्नर प्रदीप भटनागर और उनकी पत्नी स्मारक की जर्जर अवस्था देखकर यहां सुधार की दिशा में निर्देशित हुए, और आगरा विकास प्राधिकरण को मरम्मत का कम सौंपा गया था|
इन मरम्मती पहलों के बावजूद, आज स्मारक फिर से उपेक्षा और जर्जर स्थिति में फंस चुका है| हाल ही की रिपोर्ट्स में बताया गया है कि स्मारक पर लगी जंग लगी गेट, उखड़ी छत, गिरता हुआ प्लास्टर और आसपास घास-पत्तियों की झाड़ियों ने इसे और भद्दा बना दिया है
स्थानीय लोगों की नजरगी
1. लापहवाही और बंद गेट पर नाराजगी
स्थानीय निवासी जगदीश यादव का कहना है
"पहले इस स्मारक की देखभाल होगी थी, लोग आते-जाते थे, लेकिन अब कोई नहीं आता| ताला लगा है, गंदगी फैली है, और धीरे-धीरे लोग इस जगह को भूलते जा रहे है|
2. ऐतिहासिक महत्व पर चिंता
कई बुजुर्ग निवासियों का कहना है कि
"यह वही जगह है जहां बापू ने 11 दिन बिताए थे| सरकार को इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहिए, लेकिन प्रशासन की लापरवाही से ये विरासत बर्बाद हो रही है|"
3. बच्चों और युवाओं का अनुभव
कुछ युवा बताते है कि उन्हें तो यह भी नहीं पता था कि गांधी जी कभी यहां रुके थे|
"स्कूल में तो हम गांधी जी के बारे में बढ़ते है, लेकिन यहां आकर देखकर ही एक अलग अनुभव है| अफसोस की यह जगह बंद और गंदी है|"
4. सुधार की मांग
स्थानीय समाजसेवी और इतिहास प्रेमियों का मानना है
"स्मारक को फिर से खोलना चाहिए, यहां लाइब्रेरी, म्यूजियम और गाइड टूर शुरू होने चाहिए| इससे शहर की पहचान और पर्यटन दोनों को बढ़ावा मिलेगा|"
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